27 साल से मंदिर ट्रस्ट पर “कब्ज़ा” – भक्तों का सब्र टूटा, अब प्रशासन के पाले में गेंद!

हर बार टलता रहा चुनाव, सेवा समिति ने किया विकास – अब एसडीएम ने अक्टूबर में चुनाव कराने का दिया आश्वासन

भाटिया / जैतपुर।

माँ सिंह वाहिनी मंदिर न्यास भाटिया में लोकतंत्र की बुनियाद पिछले 27 वर्षों से ठहरी हुई है। मंदिर न्यास अधिनियम के अनुसार हर वर्ष अध्यक्ष पद का चुनाव अनिवार्य है, लेकिन 1998 के बाद से आज तक कोई चुनाव नहीं हुआ। नतीजा यह है कि एक ही व्यक्ति “अंगद के पांव” की तरह अध्यक्ष पद पर काबिज़ है।

भक्तों और स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह स्थिति प्रशासन की उदासीनता और कुछ ट्रस्टियों की चालाकी का परिणाम है।

हर नवरात्र पर दोहराई जाती है “तारीख़ और निरस्तीकरण” की कहानी

हर साल नवरात्रि से पहले बैठक बुलाकर चुनाव की तारीख़ तय की जाती है, लेकिन नवरात्रि के बाद बैठक को “अग्रिम आदेश तक निरस्त” कर दिया जाता है। यही प्रक्रिया 27 वर्षों से चल रही है।

इस कारण लोकतांत्रिक प्रक्रिया ठप है और एक ही व्यक्ति वर्षों से अध्यक्ष पद पर बना हुआ है।

नाम के लिए सदस्य, विकास में कोई रुचि नहीं

माँ सिंह वाहिनी मंदिर की ख्याति प्रदेश ही नहीं बल्कि कई राज्यों तक फैली है। रोज़ाना हज़ारों श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं और नवरात्रि के दौरान यह संख्या 4 से 5 लाख तक पहुँच जाती है।

ट्रस्ट की सदस्य सूची में 25 सदस्य दर्ज हैं, लेकिन नवरात्रि में केवल 4 से 5 सदस्य ही सक्रिय दिखाई देते हैं। बाकी सदस्य सिर्फ़ नाम के लिए हैं और मंदिर के विकास में कोई रुचि नहीं दिखाते।

विकास का श्रेय ‘सेवा समिति’ को, ट्रस्ट का योगदान शून्य

मंदिर का जो विकास आज दिखाई देता है, उसका श्रेय ट्रस्ट को नहीं बल्कि सेवा समिति को जाता है। समिति ने निःस्वार्थ भाव से कई बड़े कार्य किए हैं, जैसे:

विशाल गुंबद का निर्माण

मंदिर परिसर में पेवर ब्लॉक बिछवाना

मूर्तियों को स्टील पाइप से सुरक्षित करना

फूलों का रोपण और हर सोमवार विशेष प्रसाद वितरण

तालाब की सफाई और श्रद्धालुओं के लिए प्याऊ की व्यवस्था

धर्मशाला की सफाई और धार्मिक आयोजन

इसके बावजूद, समिति के सदस्यों को मंदिर विकास की प्रक्रिया से अलग कर दिया गया है।

 प्रशासन से जनता के सवाल – जवाब अब ज़रूरी है

मंदिर ट्रस्ट में 27 वर्षों से चुनाव न होना कई गंभीर सवाल खड़े करता है। श्रद्धालु अब प्रशासन से कुछ बुनियादी जवाब चाहते हैं

1. 1998 के बाद से आज तक मंदिर ट्रस्ट का चुनाव क्यों नहीं कराया गया?

2. हर बार नवरात्रि से पहले तारीख तय कर “अग्रिम आदेश तक” चुनाव स्थगित क्यों कर दिया जाता है?

3. क्या प्रशासन ने कभी जांच की कि एक ही व्यक्ति इतने वर्षों से अध्यक्ष पद पर क्यों काबिज़ है?

4. ट्रस्ट के 25 सदस्यों में से केवल 4-5 ही सक्रिय हैं, बाकी की पात्रता की जांच कब होगी?

5. सेवा समिति, जिसने मंदिर विकास में अहम भूमिका निभाई है, को ट्रस्ट में शामिल करने पर विचार क्यों नहीं किया गया?

6. क्या निष्क्रिय ट्रस्टियों को हटाने और सक्रिय सहयोगियों को शामिल करने की जिम्मेदारी प्रशासन की नहीं है?

7. क्या यह स्थिति मंदिर न्यास अधिनियम और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं है?

8. अगला चुनाव कराने की ठोस समयसीमा क्या है?

एसडीएम का पक्ष: “अक्टूबर में ही होगा चुनाव”

इस पूरे विवाद पर जब एसडीएम जैतपुर एवं पदेन पंजीयक, ट्रस्ट कमेटी भाटिया से बात की गई तो उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें कही।

उन्होंने बताया कि –

“4 अक्टूबर को जो बैठक अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित थी, वह मेरी व्यस्तता के कारण स्थगित करनी पड़ी क्योंकि मेरे पास जैतपुर के साथ-साथ सोहागपुर का भी चार्ज है।”

“ट्रस्ट में सदस्यता के लिए 57 आवेदन प्राप्त हुए हैं। इन आवेदनों में यह परीक्षण किया जा रहा है कि कहीं किसी की आपराधिक प्रवृत्ति तो नहीं है, या किसी ने सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा तो नहीं किया है, आदि बिंदुओं की विस्तृत जांच की जा रही है।”

“मंदिर ट्रस्ट की अनियमितताओं को लेकर रीवा लोकायुक्त में जांच भी चल रही है। उस जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों को देखना भी आवश्यक है।”

“सभी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद, एक महीने के भीतर अर्थात अक्टूबर माह में ही अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर बैठक आयोजित कर चुनाव सम्पन्न करा लिया जाएगा।”

अब श्रद्धालु प्रशासन के इस वादे पर निगाहें टिकाए हैं। सवाल यह है कि क्या अक्टूबर में सचमुच मंदिर ट्रस्ट में लोकतंत्र की बहाली होगी, या फिर एक बार फिर “अग्रिम आदेश” के नाम पर यह चुनाव टल जाएगा?

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