स्थान: ग्राम बलबहरा, चौकी केशवाही, जिला शहडोल (म.प्र.)
तारीख: 20–21 अक्टूबर 2025
खूनी रात: दुकान में दीया जलाने गए तीन भाई, दो लौटे लाश बनकर
शहडोल जिले के केशवाही चौकी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले ग्राम बलबहरा में मंगलवार रात जमीन विवाद ने खूनी रूप ले लिया।
तीन सगे भाइयों पर धारदार हथियारों से हमला किया गया, जिसमें राकेश तिवारी और राहुल तिवारी की मौके पर मौत हो गई, जबकि सतीश तिवारी गंभीर रूप से घायल हैं और मेडिकल कॉलेज शहडोल में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं।
गांव में मातम का माहौल है। दीपावली के बाद की रात, जब तीनों भाई अपनी दुकान में दीया जलाने गए थे, तब घात लगाकर बैठे हमलावरों ने तलवार और फरसे से हमला बोल दिया।
गांव में गुस्सा, सड़क पर शव — प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी
बुधवार सुबह आक्रोशित ग्रामीणों ने दोनों भाइयों के शवों को मुख्य सड़क पर रखकर NH-43 जाम कर दिया।
गांव में घंटों तक आवागमन ठप रहा, ग्रामीणों ने पुलिस और प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
लोगों की मांग थी कि
“सभी आरोपियों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए,
पीड़ित परिवार को मुआवजा और सुरक्षा दी जाए।”
ग्रामीणों का आरोप: “पहले ही दी थी शिकायत, पुलिस ने नहीं सुनी”
ग्रामवासियों और परिजनों ने गंभीर आरोप लगाया है कि
“मुख्य आरोपी अनुराग शर्मा, सचिन शर्मा और उनके अन्य साथियों के खिलाफ पहले भी कई शिकायतें दी गई थीं,
लेकिन पुलिस ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।”
इसी प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम यह हुआ कि आरोपियों के हौसले इतने बुलंद हो गए कि उन्होंने दुकान में घुसकर हमला कर दिया।
घायल का वीडियो वायरल — नाम लेकर लगाए आरोप
घटना के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ,
जिसमें घायल सतीश तिवारी ने नाम लेकर आरोपियों की पहचान की है।
वीडियो में उन्होंने अनुराग शर्मा, सचिन शर्मा, नीलेश कुशवाहा और नयन पाठक का नाम लिया।
हालांकि, पुलिस ने अभी तक आधिकारिक पुष्टि नहीं की है कि कितने आरोपियों को हिरासत में लिया गया है।
चौकी प्रभारी लाइन अटैच, पुलिस का दावा — “दोषियों को नहीं बख्शा जाएगा”
प्रकरण में लापरवाही के आरोप लगने के बाद केशवाही चौकी प्रभारी आशीष झारिया को लाइन अटैच कर दिया गया है।
पुलिस अधीक्षक ने बयान जारी कर कहा है कि
“दोषियों को किसी भी हाल में नहीं छोड़ा जाएगा,
सभी पर कठोर कार्रवाई होगी।”
घटना स्थल पर भारी पुलिस बल तैनात है।
जिलेभर से अतिरिक्त फोर्स मंगाई गई है ताकि स्थिति पर नियंत्रण रखा जा सके।
24 न्यूज़ की जांच में उठे सवाल
क्या पुलिस को पहले से विवाद की जानकारी थी?
क्या गांव में किसी ने 112 या 100 पर कॉल किया था?
क्या प्रशासन ने पुराने जमीन विवाद पर सीमांकन या रोकथाम की कोई कार्रवाई की थी?
क्या यह दोहरी हत्या प्रिवेंटिव एक्शन की विफलता का उदाहरण है?
निष्कर्ष:
ग्राम बलबहरा अब केवल एक गांव नहीं रहा —
यह एक प्रशासनिक असफलता का प्रतीक बन गया है।
जमीन के छोटे से टुकड़े पर वर्षों से चलता आ रहा विवाद
आख़िरकार दो निर्दोष जिंदगियों को निगल गया।
पुलिस और प्रशासन दोनों से यही सवाल पूछा जा रहा है —
“अगर पहले रोकथाम की जाती, तो क्या आज यह खून-खराबा टल नहीं सकता था?”
यह मामला केवल हत्या नहीं,
बल्कि उस प्रणाली की नींद का आईना है
जो शिकायतें सुनने से पहले ही थक जाती है
और कार्रवाई तब करती है,
जब सड़क पर लाशें गिर चुकी होती हैं।
अब पूरा शहडोल पूछ रहा है —
क्या दोषियों को सज़ा मिलेगी, या एक बार फिर रसूख और संबंधों के आगे न्याय हार जाएगा?



