झिरिया प्राथमिक विद्यालय, विकासखंड बुढ़ार, जिला शहडोल (म.प्र.)
“सब पढ़ें, सब बढ़ें” के सरकारी नारे की सच्चाई अगर जाननी है तो झिरिया गांव के प्राथमिक विद्यालय में ज़रूर जाइए। यहां सरकारी शिक्षा प्रणाली का सच किसी तमाचे से कम नहीं। बच्चे रोज़ स्कूल जाते हैं, लेकिन उन्हें पढ़ाने वाला कोई नहीं। और जब सवाल किया जाए तो जिम्मेदार अधिकारी फोन तक नहीं उठाते।
स्कूल में 32 बच्चे… पर शिक्षक नदारद!
झिरिया प्राथमिक विद्यालय में 14 बालक और 18 बालिकाएं नामांकित हैं। लेकिन आज की स्थिति किसी बदहाल सिस्टम की कहानी कह रही है –
शिक्षक रंगनाथ यादव को कहीं और अटैचमेंट कर दिया गया है।
शिक्षक घनश्याम वर्मा स्कूल आने की जिम्मेदारी भूल चुके हैं। उनकी अनुपस्थिति अब “आदत” नहीं बल्कि “नियम” बन चुकी है।
आज फिर वही हुआ – कोई शिक्षक नहीं आया। बच्चे कक्षा में बैठे रहे, घंटों इंतज़ार किया और फिर बिना पढ़े ही लौट गए। यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि बच्चों के अधिकारों के साथ खुला खिलवाड़ है।
BEO तक ने फोन उठाना जरूरी नहीं समझा!
स्थिति की गंभीरता को समझते हुए जब विकासखंड शिक्षा अधिकारी (BEO) को फोन कर जानकारी देना चाहा गया, तो उन्होंने कॉल रिसीव करना भी जरूरी नहीं समझा।
सवाल यह है – जब अधिकारी जवाब ही नहीं देंगे, तो समाधान कौन करेगा?
बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी कौन लेगा?
यह चुप्पी अब महज़ लापरवाही नहीं, बल्कि शिक्षा तंत्र के पतन की सबसे बड़ी निशानी है।
ग्रामीणों में गुस्सा, बच्चे हताश
ग्रामीणों का कहना है:
“हमारे बच्चे रोज़ स्कूल जाते हैं, लेकिन वहां पढ़ाई नहीं होती। शिकायत करने पर अधिकारी जवाब नहीं देते। अब तो ऐसा लगता है जैसे सरकार को हमारे बच्चों के भविष्य की कोई परवाह ही नहीं।”
झिरिया विद्यालय आज एक स्कूल नहीं, बल्कि सरकारी उपेक्षा का प्रतीक बन गया है।
सवाल जो शिक्षा विभाग को झकझोरने चाहिए
अनुपस्थित रहने वाले शिक्षक पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
BEO जैसी जिम्मेदार कुर्सी पर बैठे लोग जवाबदेही से क्यों भाग रहे हैं?
बच्चों का भविष्य अंधेरे में धकेलने वालों पर आपराधिक मामला क्यों नहीं दर्ज किया गया?
24 न्यूज़ चैनल की मांग
अनुपस्थित शिक्षक घनश्याम वर्मा को तुरंत निलंबित किया जाए।
रंगनाथ यादव की अटैचमेंट रद्द कर उन्हें झिरिया में पदस्थ किया जाए।
BEO की जवाबदेही तय कर सख्त विभागीय कार्रवाई की जाए।
“जहां शिक्षक नहीं और अधिकारी जवाब नहीं देते, वहां शिक्षा नहीं – सिर्फ अंधेरा होता है।”
झिरिया विद्यालय की यह तस्वीर सिर्फ एक स्कूल की नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की सड़ी हुई हकीकत है।



