धर्मेन्द्र द्विवेदी | एडिटर-इन-चीफ, 24 News Channel
विशेष रिपोर्ट — अमलाई (शहडोल)
श्री रमन्ना, जवाब दो — तुम कहाँ थे जब एक आदमी दफन हो रहा था?
स्थल के प्रशासनिक प्रभारी सब-एरिया मैनेजर श्री रमन्ना थे जिनकी ज़िम्मेदारी थी साइट पर सुरक्षा सुनिश्चित करना।
नियम, निरीक्षण और बचाव-निगरानी की पहली जवाबदेही उनकी मेज पर आती है।
हमने लिखित रूप में जानकारी माँगी, स्थानीय सूत्रों से तथ्य जाने, और फील्ड टीम ने धरातल देखा — पर अब तक कोई स्पष्ट उत्तर नहीं।
अब समय आ गया है कि श्री रमन्ना इन सवालों का जवाब दें:
11 अक्टूबर शाम 5:25 से पहले साइट निरीक्षण कब किया गया?
किस अधिकारी को Dewatering/Bench Stability का जिम्मा दिया गया?
Pre-Work Safety Clearance कब साइन की गई? प्रमाण प्रस्तुत करें।
Rescue Operation कब सक्रिय किया गया और कब रुका?
“ये सवाल कोरे नहीं — ये काग़ज़ माँग रहे हैं। जो या तो आपको बचाएँगे या आपको उजागर करेंगे।”
तस्वीरें और रिकॉर्ड खुद गवाही दे रहे हैं
फोटोज़ और फील्ड-नोट्स बताते हैं — न पम्पिंग-लाइन, न टेम्परेरी बरम, न डिवाटरिंग सेटअप।
साइट पर कोई rescue-rig नहीं दिखा।
ये “हादसे की तस्वीरें” नहीं, बल्कि सुरक्षा-नियमों के उल्लंघन के तकनीकी साक्ष्य हैं।
“मीटिंग-रूम की दीवारों में ‘जांच चल रही है’ की गूंज अब बहाना नहीं, जवाबदेही से भागने की कहानी है।”
15 अक्टूबर — जब रेस्क्यू रुका था और ऑफिस में नाश्ता चल रहा था
स्थानीय मजदूरों के अनुसार, 15 अक्टूबर 2025 को, जब ट्रक और ऑपरेटर अनिल कुशवाहा अब भी लापता थे,
अमलाई सब-एरिया ऑफिस में वरिष्ठ अधिकारी बैठक और चाय-नाश्ता कर रहे थे।
उसी समय खदान स्थल पर कोई सक्रिय रेस्क्यू टीम नज़र नहीं आई।
हम सीधा आरोप नहीं लगाते, पर सवाल साफ़ है —
क्या रेस्क्यू ऑपरेशन दूसरी तरफ रुका था और अफसरों की पहली प्राथमिकता मीटिंग थी?
“जब मिट्टी अब भी किसी की साँसें छिपाए हो और मीटिंग-हॉल में कपों की टंकार हो —
तो वह सिर्फ़ चाय नहीं, संवेदना का उबलता सबूत होती है।”
रमन्ना, अब ये दस्तावेज़ सार्वजनिक करो
10–11 अक्टूबर की Pre-Work Safety Clearance/Dewatering Certificates।
9–12 अक्टूबर के Form-B निरीक्षण रिकॉर्ड (नाम/हस्ताक्षर सहित)।
Rescue Log — ऑपरेशन के आरम्भ/समापन के समय और उपस्थित अधिकारी।
कोई भी Internal Orders जिनमें साइट पर काम जारी रखने के निर्देश हैं।
“अगर ये काग़ज़ मौजूद हैं तो सामने लाओ; नहीं तो यही काग़ज़ सवाल बन जाएँगे।”
अगर दस्तावेज़ नहीं आए — अगले कदम स्पष्ट हैं
यदि 48–72 घंटों में जवाब नहीं दिया गया तो —
RTI फाइल की जाएगी, CrPC 174 के अंतर्गत प्राथमिक रिपोर्ट की माँग उठेगी,
NGO और कानूनी टीम को जोड़ा जाएगा,
और रोज़ाना अपडेट के साथ रमन्ना की हर चुप्पी जनता तक पहुँचेगी।
“यह कोई धमकी नहीं, कानून का प्रयोग है — अब चुप्पी भी सबूत बन गई है।”
हर सवाल रमन्ना के दिल पर वार है
“11 अक्टूबर की शाम जब अनिल कुशवाहा की साँसें धँस रही थीं,
क्या आपकी चाय ठंडी हो रही थी, श्री रमन्ना?
जब बच्चे ने पूछा ‘पापा कब आएँगे?’,
क्या आपने कभी सोचा कि आपके उत्तर की आवाज़ उसी मिट्टी में दबी है?”
जनता का संदेश — अब छिपना आसान नहीं
जनता अब पूछ नहीं रही — माँग रही है।
श्री रमन्ना, अगर आपके पास उत्तर हैं तो उन्हें सामने रखिए;
नहीं तो जवाबदेही के पहिए अब आप तक आ रहे हैं।
मिट्टी की गवाही — जो इंसानियत से सवाल करती है
“कभी-कभी मिट्टी भी इंसान से ज़्यादा सच्ची होती है —
वह सब देखती है, सब याद रखती है।
चार दिन बाद भी जब वही पानी उसी जगह ठहरा हो,
तो समझ लीजिए कि न्याय भी कहीं अटका पड़ा है।
एक माँ अब भी दरवाज़े की ओर देखती है,
एक बच्चा अब भी पिता का नाम पुकारता है,
और एक सिस्टम अब भी अपनी फाइलों में खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश कर रहा है।
श्री रमन्ना — जवाब सिर्फ़ फाइल में नहीं चाहिए,
जवाब इंसानियत को चाहिए।”
डिस्क्लेमर:
यह रिपोर्ट स्थल-निरीक्षण, फोटोग्राफिक साक्ष्य और स्थानीय सूत्रों पर आधारित है।
जहाँ आधिकारिक दस्तावेज़ उपलब्ध न थे, वहाँ “प्रारम्भिक निरीक्षण/सूत्रों के अनुसार” शब्द का प्रयोग किया गया है।
इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति या संस्था की छवि को हानि पहुँचाना नहीं,
बल्कि जनहित में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है।



