कुछ दिनों से एक पत्रकार लगातार यह खबरें चला रहा है कि “बिना विज्ञापन अतिथि शिक्षक रख लिए गए।”
सच यह है कि खबरों की यह दौड़ पूरे नियम पढ़े बिना लिखी जा रही है। आधा नियम, आधा सच – और पूरी अफवाह!
नियम क्या कहते हैं?
1. शासन का नियम स्पष्ट है – “जो अतिथि शिक्षक पिछले सत्र में पढ़ा चुका हो, उसे ही अगले सत्र में प्राथमिकता दी जाती है।”
2. संबंधित शिक्षक ने सत्र 2023–24 में पढ़ाया, बच्चों का परिणाम बेहतरीन रहा और विद्यालय को लिखित रूप से कभी नहीं छोड़ा।
3. सत्र 2024–25 में कुछ प्रशासनिक कारणों से उन्हें मौका नहीं मिला, लेकिन उनके विषय की पढ़ाई जारी रही।
4. सत्र 2025–26 में विज्ञप्ति तो निकली, मगर नियम के कारण उसमें तकनीकी अड़चन आई — क्योंकि पिछले शिक्षक का अधिकार पहले से सुरक्षित था।
5. समिति अनुमोदन और शिक्षा हित में, विद्यालय प्राचार्य ने शासन प्रक्रिया के अनुसार उन्हें पुनः आमंत्रित किया।
पत्रकार का “आधा सच” –
पत्रकार केवल “बिना विज्ञापन” का राग अलाप रहे हैं, पर यह नहीं बता रहे कि विज्ञप्ति निरस्त होने का कारण भी यही नियम था।
जब नियम खुद कह रहा हो कि “पहले वाले को प्राथमिकता दो”, तो नए विज्ञापन का कोई मतलब ही नहीं बचता।
अफ़सोस की बात है कि शिक्षा हित की इस प्रक्रिया को भी सुर्ख़ियों की राजनीति बना दिया गया और जनता व प्रशासन दोनों को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है।
निचोड़ –
पी.एम. श्री उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बकहो की यह नियुक्ति पूरी तरह से
-शासन नियम,
-समिति अनुमोदन,
-और शिक्षा हित
के अनुरूप है।
ऐसे में यह कहना कि “बिना विज्ञापन भर्ती” हो गई, सिर्फ़ अधूरा सच है और अफ़वाह फैलाने की कोशिश है।
इस पूरे प्रकरण में किसी अधिकारी की कोई गलती नहीं है। समिति अनुमोदन और प्रक्रिया के तहत ही कदम उठाए गए हैं।
सच्चाई यही है कि यहाँ नियम का पालन हुआ है, और बच्चों की पढ़ाई को प्राथमिकता दी गई है।



