“जमीन की रजिस्ट्री में खेल… अब जवाबदेही किसकी?”
शहडोल ज़िले में बिना अनुमति ज़मीन की रजिस्ट्री सिर्फ़ एक प्रशासनिक गलती नहीं है, बल्कि यह व्यवस्था में गहरे बैठे भ्रष्टाचार और मिलीभगत का जीता-जागता उदाहरण है। सवाल यह है कि जब भू-राजस्व संहिता की धारा 165(6-क) स्पष्ट रूप से कहती है कि ऐसी जमीनों की बिक्री बिना अनुमति संभव ही नहीं है, तब यह खेल आखिर कैसे हो गया?
क्या यह संभव है कि बिना अफसरों की नज़र के, बिना तहसील और रजिस्ट्री कार्यालय की सहमति के इतनी बड़ी गड़बड़ी हो जाए? जवाब साफ है – नहीं। इसका मतलब साफ है कि इस पूरे मामले में अंदरखाने मिलीभगत रही है।
कलेक्टर ने जांच समिति बना दी है, लेकिन जनता का विश्वास सिर्फ समिति गठन से बहाल नहीं होगा। असली कसौटी होगी –
क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी?
क्या भूमाफिया और अफसरों की सांठगांठ का सच सामने आएगा?
क्या पीड़ितों को न्याय मिलेगा?
यदि यह मामला भी लीपापोती में दबा दिया गया तो यह प्रशासनिक ढांचे पर जनता के भरोसे पर गहरी चोट होगी। अब समय है कि सरकार और प्रशासन यह साबित करे कि कानून से बड़ा कोई नहीं।