
शहडोल,
एसईसीएल सोहागपुर क्षेत्र में इस समय सबसे गर्म चर्चा किसी प्रोजेक्ट या उत्पादन पर नहीं, बल्कि एक अफसर की मनमर्जी पर हो रही है। मामला है अमित सिंह का, जिन्होंने बिना विभागीय अनुमति लिए ही मानहानि नोटिस थमा दिया। यह कदम साफ दिखाता है कि विभागीय नियमावली को अहंकार ने एक झटके में सस्पेंड कर दिया है।
नियमों का हाल – किताबों में क़ैद
जहाँ साधारण कर्मचारी छुट्टी लेने के लिए भी आवेदन-पत्रों, मंजूरियों और हस्ताक्षरों की लंबी कतार में फँसते हैं, वहीं बड़े अफसरों के लिए नियम सिर्फ टेबल पर रखी धूल भरी किताबें बनकर रह गए हैं। अमित सिंह का यह कदम यही दर्शाता है कि अब एसईसीएल में अनुशासन और प्रक्रिया की जगह व्यक्तिगत गुस्से और अहंकार ने कब्ज़ा कर लिया है।
जब प्रक्रिया छुट्टी पर और मनमर्जी ड्यूटी पर
नियमों की किताबें टेबल पर पड़ी रहीं, और नोटिस हवा में उड़ चला।
अनुमति लेने की औपचारिकता छुट्टी पर गई और नोटिस ड्यूटी पर हाज़िर हो गया।
यह नज़ारा देखकर कर्मचारी गलियारों में फुसफुसाते और तंज कसते दिखे—
“एसईसीएल में अब नियम जानना ज़रूरी नहीं, नोटिस देना ज़रूरी है।”
सवालों की बौछार
क्या अब विभागीय अनुमति सिर्फ छोटे कर्मचारियों के लिए रह गई है?
अगर हर अफसर अहंकार में नियमों को सस्पेंड कर दे, तो अनुशासन किसके भरोसे बचेगा?
क्या एसईसीएल अब व्यक्तिगत अदालत बनकर रह जाएगा, जहाँ नियम से ज्यादा मनमर्जी का राज चलेगा?
असली मुद्दा
यहाँ सवाल नोटिस का नहीं, बल्कि उस मानसिकता का है जिसमें “अहंकार नियमों से बड़ा और अनुमति कागज़ों से छोटी” हो गई है। जब अफसर खुद नियमों की अनदेखी करने लगें, तो विभागीय अनुशासन और विश्वास की रीढ़ कैसे बचेगी?
निचोड़
पूरा प्रकरण एसईसीएल के अनुशासन पर व्यंग्यात्मक तमाचा है। मानहानि नोटिस देने की हड़बड़ी में विभागीय अनुमति को ताक पर रख देना यह साबित करता है कि अब अफसरों की दुनिया में नियम सिर्फ किताबों की शोभा रह गए हैं और असली ताक़त अहंकार की जेब में बंद है।
“अनुमति छुट्टी पर, अहंकार ड्यूटी पर।”