
शहडोल।
जिले में खाद की काला बाज़ारी ने एक बार फिर से प्रशासन और किसानों को झकझोर दिया है। किसानों के लिए भेजी गई यूरिया खाद का वितरण बड़े पैमाने पर अपंजीकृत लोगों और व्यापारियों को कर दिया गया। हालात इतने संगीन रहे कि जब प्रशासनिक टीम निरीक्षण करने पहुँची तो गोदाम पूरी तरह खाली मिला।
कलेक्टर डॉ. केदार सिंह ने इस घोटाले पर सख़्त कदम उठाते हुए आदिम जाति सेवा सहकारी समिति टिहकी के प्रबंधक राजेश अवस्थी और जैतपुर समिति के प्रबंधक जमुन प्रसाद को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया।
किसानों के हिस्से पर डाका
सूत्रों के अनुसार, समितियों द्वारा लगभग 190 लोगों को खाद का वितरण किया गया, लेकिन उनमें अधिकांश लोग पंजीकृत किसान नहीं थे। इनमें व्यापारी और बिचौलिये शामिल थे। यही नहीं, पीओएस मशीन में 14.58 टन खाद का स्टॉक दर्ज दिखाया गया, जबकि मौके पर गोदाम पूरी तरह खाली था।
सूत्रों का खुलासा
स्थानीय सूत्रों ने बताया कि जैतपुर समिति का गोदाम कई दिनों से ‘औपचारिक रूप से खाली’ दिखाया जा रहा था, जबकि रात के समय खाद की बोरी ट्रकों से बाहर भेजी जाती रही। सूत्रों का कहना है कि इस गड़बड़ी में समिति के कर्मचारियों के अलावा स्थानीय स्तर पर कुछ प्रभावशाली लोगों की भी मिली भगत रही है। यही कारण है कि गोदाम के रजिस्टर और पीओएस मशीन में स्टॉक मौजूद दिखाया गया, लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके उलट थी।
किसानों का आक्रोश
इस कार्रवाई के बाद किसान संगठनों ने प्रशासन का स्वागत किया और चेतावनी दी कि अगर भविष्य में ऐसी घटनाएँ दोहराई गईं तो बड़े आंदोलन की राह अपनाई जाएगी। किसान नेताओं का कहना है कि खाद की काला बाज़ारी किसानों के जीवन और उत्पादन पर सीधा प्रहार है।
जानकारों का कहना है
जानकारों का मानना है कि खाद की कालाबाज़ारी केवल किसानों की समस्या नहीं, बल्कि पूरे जिले की कृषि अर्थव्यवस्था पर सीधा असर डालती है। खाद की कमी से किसान समय पर बुवाई और सिंचाई नहीं कर पाते, जिससे पैदावार प्रभावित होती है।
कानूनी जानकारों का कहना है कि यह मामला सिर्फ़ लापरवाही नहीं, बल्कि आपराधिक अपराध है, जिसमें दोषियों पर आवश्यक वस्तु अधिनियम और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
सामाजिक जानकारों का कहना है कि इस तरह की गड़बड़ी किसानों के भरोसे को तोड़ देती है और कई बार किसान कर्ज़ व आत्महत्या जैसे संकटों की ओर धकेल दिए जाते हैं।
जिम्मेदारी पर सवाल
यह मामला केवल दो प्रबंधकों की लापरवाही तक सीमित नहीं है। सवाल उठ रहे हैं कि उच्च स्तर के अधिकारी अब तक क्यों चुप रहे और निगरानी तंत्र ने समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं की। किसानों का कहना है कि यह एक संगठित रैकेट है, जिसमें बड़े स्तर पर मिलीभगत से करोड़ों का खेल खेला जा रहा है।