“सी.पी. राधाकृष्णन बने देश के 15वें उपराष्ट्रपति – लोकतंत्र के नए अध्याय की शुरुआत”

नई दिल्ली, 09 सितम्बर 2025।

भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में आज एक अहम मोड़ आया है। एनडीए प्रत्याशी और महाराष्ट्र के मौजूदा राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन ने विपक्षी INDIA गठबंधन के उम्मीदवार बी. सुधर्शन रेड्डी को हराकर देश के 15वें उपराष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल किया। संसद भवन में हुए इस चुनाव में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने पूरी ताक़त झोंकी, लेकिन नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि एनडीए का संसद पर मजबूत नियंत्रण है।

चुनाव का नतीजा – एकतरफा जीत

संसद भवन में सोमवार को हुए मतदान में 98% सांसदों ने भाग लिया। कुल 752 सांसदों में से सी.पी. राधाकृष्णन को 452 मत मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी बी. सुधर्शन रेड्डी को 300 मत प्राप्त हुए।

यह जीत सिर्फ संख्यात्मक बहुमत नहीं, बल्कि उस राजनीतिक रणनीति का भी परिणाम है, जिसके तहत भाजपा और एनडीए ने संसद में अपना वर्चस्व कायम रखा है।

 सी.पी. राधाकृष्णन कौन हैं?

पूरा नाम: चंद्रपुरम पोनुस्वामी राधाकृष्णन

उम्र: लगभग 67 वर्ष

जन्मस्थान: तमिलनाडु

शैक्षणिक पृष्ठभूमि: स्नातक स्तर तक शिक्षा प्राप्त, विद्यार्थी जीवन से ही सामाजिक कार्यों में सक्रिय

राजनीतिक यात्रा

1998 और 1999 में कोयम्बटूर से सांसद चुने गए।

2003–2006 तक भाजपा तमिलनाडु प्रदेश अध्यक्ष रहे।

2023 में झारखंड के राज्यपाल नियुक्त हुए।

इसके बाद तेलंगाना और पुडुचेरी का अतिरिक्त प्रभार संभाला।

2024 से अब तक महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे।

छवि: सौम्य स्वभाव, संवादप्रिय और गैर-टकराववादी नेता के रूप में पहचाने जाते हैं।

दक्षिण भारत से राष्ट्रीय राजनीति तक

तमिलनाडु से निकलकर दिल्ली की सत्ता के शीर्ष तक पहुँचना आसान नहीं था। लंबे समय तक भाजपा को दक्षिण भारत में मज़बूत ज़मीन नहीं मिल पाई। लेकिन सी.पी. राधाकृष्णन जैसे नेताओं ने संगठन को जमीनी स्तर पर खड़ा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज जब वे उपराष्ट्रपति बने हैं, तो यह केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं बल्कि भाजपा की दक्षिण भारत में राजनीतिक पैठ का भी प्रतीक है।

उपराष्ट्रपति पद का महत्व

भारत का उपराष्ट्रपति न केवल राज्यसभा का सभापति होता है, बल्कि राष्ट्रपति के बाद देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है। राधाकृष्णन के सामने राज्यसभा का संचालन सबसे बड़ी चुनौती होगी, जहाँ सत्ता और विपक्ष के बीच लगातार तीखी नोकझोंक होती रहती है। उनकी सरलता और संतुलित दृष्टिकोण इस सदन को शांति और गरिमा के साथ चलाने में सहायक साबित हो सकती है।

राजनीतिक संदेश

इस चुनाव ने कई राजनीतिक संदेश भी दिए हैं –

1. संसद में एनडीए का वर्चस्व और मजबूत हुआ।

2. दक्षिण भारत को उच्च संवैधानिक पद देकर भाजपा ने एक बड़ा राजनीतिक दांव चला है।

3. विपक्ष की एकजुटता पर भी सवाल उठे हैं, क्योंकि अपेक्षित मत उन्हें नहीं मिल पाए।

 निष्कर्ष

सी.पी. राधाकृष्णन का यह चयन बताता है कि भारतीय लोकतंत्र में समर्पण, संगठन और संघर्षशीलता को हमेशा मान्यता मिलती है।

आज का दिन केवल एक नए उपराष्ट्रपति की घोषणा का नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की सुदृढ़ता और परिपक्वता का भी प्रमाण है।

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