SECL में विस्फोटक खुलासा: प्रभारी एरिया सिक्योरिटी ऑफिसर के प्रभाव में विभागीय ड्यूटी पर लगी किराये की गाड़ी पहुँची उमरिया के वाटर पार्क – “स्वीकृति” पर उठे गंभीर सवाल, जांच की मांग तेज़
धनपुरी/उमरिया।
दक्षिण पूर्वी कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) के सोहागपुर क्षेत्र से जुड़ा एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे विभागीय सिस्टम की नींव हिला दी है। जिस वाहन को सुरक्षा विभाग में सरकारी कार्यों के लिए किराये पर लिया गया था, वही वाहन अपने कार्यक्षेत्र से लगभग 165 किलोमीटर दूर जाकर उमरिया स्थित “Kailash Ji Water Park” जैसे निजी स्थल पर खड़ा पाया गया।
प्राप्त तस्वीरें, लोकेशन डेटा और भू-स्थान रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करते हैं कि वाहन ने विभागीय सीमा से काफी बाहर तक यात्रा की। यह जानकारी सवाल खड़ा करती है कि आखिर ऐसी लंबी दूरी तय करने की जरूरत क्यों पड़ी और किस परिस्थिति में गाड़ी वहाँ तक पहुँची।
यह अभी स्पष्ट नहीं है कि वाहन को इतनी दूरी तय करने के लिए विभागीय स्तर पर कोई स्वीकृति दी गई थी या नहीं। उपलब्ध दस्तावेज़ों में किसी आदेश या अनुमति का उल्लेख नहीं मिला है। यह तथ्य भी अब जांच के घेरे में है।
165 किलोमीटर का यह “सफर” बन गया है जांच का सबूत –
1.कार्य क्षेत्र से बाहर मूवमेंट: धनपुरी (सोहागपुर एरिया) से उमरिया स्थित वॉटर पार्क की दूरी लगभग 165 किमी है। विभागीय अनुबंध के तहत लगी गाड़ी का इतना दूर तक जाना अनुबंध की भावना और संचालन प्रक्रिया दोनों पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
2.अनुबंध शर्तों पर सवाल: यह वाहन विभाग द्वारा खरीदी गई संपत्ति नहीं, बल्कि एक निजी कंपनी से टेंडर के माध्यम से किराये पर ली गई गाड़ी है। ऐसे वाहनों का उपयोग केवल विभागीय कार्यों और निर्धारित क्षेत्र तक सीमित होना चाहिए। उनका कार्यक्षेत्र से इतनी दूर जाना अनुबंध शर्तों की भावना से परे है।
3.निगरानी तंत्र पर बड़ा प्रश्न: यदि विभाग को वाहन की इस यात्रा की जानकारी नहीं थी, तो यह निगरानी व्यवस्था की विफलता है। और अगर जानकारी थी, तो यह आदेश किसने दिया और किस आधार पर – यह सवाल अब जांच का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है।
जनता के संसाधनों के साथ “सुविधा का खेल”
किराये पर ली गई वाहन भी सरकारी जिम्मेदारी का हिस्सा होती है। जब जनता के टैक्स से भुगतान कर किसी वाहन को सरकारी कार्यों के लिए अनुबंधित किया जाता है, तो उसका हर उपयोग जनता के भरोसे से जुड़ा होता है।
अब सवाल यह है कि —
क्या विभाग को पता था कि वाहन 165 किमी दूर गया?
क्या कोई आधिकारिक आदेश जारी किया गया था?
और अगर नहीं, तो यह मूवमेंट किसके प्रभाव में हुआ?
इन सवालों के जवाब जांच के बाद ही सामने आएंगे, लेकिन इतना तय है कि 165 किलोमीटर की यह यात्रा अब एक गवाह बन चुकी है।
जांच एजेंसियों तक मामला जाने की संभावना तेज़
सूत्रों का कहना है कि अगर विभाग ने इस मामले पर तुरंत और सख्त कार्रवाई नहीं की, तो इसे CBI, CVC, EOW और SECL Vigilance जैसी एजेंसियों को भेजने की मांग की जाएगी। ये एजेंसियां इस बात की तह तक जा सकती हैं कि –
वाहन किस परिस्थिति में और किसके आदेश पर कार्यक्षेत्र से 165 किमी दूर पहुँचा?
क्या यह महज़ लापरवाही थी या किसी बड़े प्रभाव का परिणाम?
क्या इसमें संसाधनों के गलत इस्तेमाल या अनुबंध उल्लंघन की संभावना है?
इन सभी बिंदुओं पर सच्चाई केवल जांच के बाद ही स्पष्ट होगी।
जनता का सवाल – “क्या कानून सब पर बराबर है?”
“अगर विभागीय अनुबंधित वाहन भी इतनी दूर तक यात्रा कर सकते हैं और किसी को जवाब नहीं देना पड़े, तो फिर नियमों और अनुबंधों की जरूरत ही क्या है?” – स्थानीय नागरिकों की प्रतिक्रिया
“यह सिर्फ एक वाहन का मामला नहीं, बल्कि उस मानसिकता का आईना है जो विभागीय संसाधनों को निजी सुविधा का साधन समझती है।” – कोलफील्ड्स कर्मचारी
‘165 किलोमीटर दूर वाहन की मौजूदगी अब सिर्फ़ यात्रा नहीं, जवाबदेही का सबूत है।’
यह मामला अब केवल अनुशासन या लापरवाही का नहीं रहा — यह पूरे सिस्टम की जवाबदेही और अनुबंध व्यवस्था पर सबसे बड़ा प्रश्न बन चुका है। अगर अब भी पारदर्शिता नहीं दिखाई गई, तो यह घटना आने वाले कई बड़े घोटालों की जड़ बन सकती है।
अस्वीकरण –
यह समाचार दस्तावेज़ों, फोटो, लोकेशन डाटा, भू-स्थान रिपोर्ट और सूत्रों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य किसी व्यक्ति, अधिकारी या संस्था को दोषी ठहराना नहीं है। प्रस्तुत सामग्री केवल जनहित में प्रश्न उठाने और जांच की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित करने के लिए है। अंतिम सच्चाई संबंधित विभागों या जांच एजेंसियों द्वारा जांच के बाद ही स्पष्ट होगी।



