शहडोल।
भोर की पहली किरण जब धरती पर पड़ी, तब शहडोल की सड़कें किसी तपोवन से कम नहीं लगीं। नंगे पाँव, भगवा वस्त्र, माथे पर चंदन की रेखाएँ और प्रत्येक कदम पर दण्डवत करते हुए आगे बढ़ते 108 श्री बाबा श्री नबल गिरी महाराज, धौलपुर के शिष्य श्री राजगिरि महाराज… यह दृश्य केवल आँखों से नहीं, आत्मा से अनुभव करने योग्य था।
द्रवित कर देने वाला दर्शन –
आज सुबह जब मेरे चरण भी उस पथ पर पड़े जहाँ महाराज दण्डवत कर रहे थे, तो मन द्रवित हो उठा। उनकी आँखों में तप का तेज, चेहरे पर अद्भुत शांति और शरीर पर त्याग की रेखाएँ देखकर ऐसा प्रतीत हुआ मानो युगों की साधना मेरे सम्मुख खड़ी हो। उनके चरणों में बैठकर आशीर्वाद लेना केवल सौभाग्य नहीं, बल्कि जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि लगा।
प्रथम से द्वितीय यात्रा तक –
श्री राजगिरि महाराज पहले ही गंगोत्री से रामेश्वरम तक की दण्डवत यात्रा पूर्ण कर चुके हैं। हजारों किलोमीटर की वह कठिन तपस्या सनातन धर्म की शक्ति और संकल्प की मिसाल बन गई।
अब वे अपने द्वितीय संकल्प पर हैं — पंचनाबाध (करौली) से जगन्नाथपुरी तक की दण्डवत यात्रा। प्रत्येक दण्डवत में शरीर भूमि से लिपटता है, और हर उठान में धर्म की ज्योति प्रज्वलित होती है।
यात्रा का दिव्य उद्देश्य –
बाबा जी ने कहा —
“यह यात्रा व्यक्तिगत तप नहीं, बल्कि सनातन धर्म की रक्षा का संकल्प है। इसका उद्देश्य है—
गौ माता की रक्षा – क्योंकि गौ ही धर्म की रीढ़ है।
ब्राह्मण और संस्कृति की सुरक्षा – ताकि वेद-पुराण और परंपरा अमर रहें।
मानव सेवा का प्रसार – क्योंकि सेवा ही सच्चा धर्म है।”
उनकी वाणी में गूंजती करुणा और दृढ़ता ने वातावरण को पवित्र कर दिया।
सनातन धर्म की अमर गाथा –
हर दण्डवत यह उद्घोष करता है —
“धर्मो रक्षति रक्षितः”
यानी जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।
राजगिरि महाराज की यह यात्रा केवल उनके तप का प्रमाण नहीं, बल्कि सनातन की ध्वजा है, जो आने वाली पीढ़ियों को बताएगी कि धर्म त्याग और सेवा से ही जीवित रहता है।
समाज के लिए प्रेरणा –
आज जब आधुनिकता की दौड़ में परंपराएँ विलुप्त होती जा रही हैं, तब यह तपस्या हमें स्मरण कराती है कि बिना धर्म के जीवन अधूरा है।
श्री राजगिरि महाराज का तप हमें सिखाता है कि चाहे मार्ग कितना भी कठिन क्यों न हो, आस्था और संकल्प से असंभव भी संभव हो जाता है।
हर-हर महादेव! जय श्रीराम! जय जगन्नाथ!
यह केवल यात्रा नहीं, बल्कि सनातन धर्म का महायज्ञ है, जिसमें एक संत का हर श्वास, हर दण्डवत, और हर कदम धर्म, संस्कृति और मानवता की रक्षा के लिए समर्पित है।


