
बिना अनुमति दर्जनों ज़मीनों की रजिस्ट्री, राजस्व संहिता को ताक पर रखकर हुआ बड़ा खेल; अब जनता को इंतज़ार, दोषियों पर गिरेगी गाज या होगी लीपापोती?
शहडोल। ज़िले में ज़मीन की रजिस्ट्री में हुए बड़े घोटाले ने प्रशासन की नींद उड़ा दी है। अगस्त 2025 में जिन जमीनों पर बिना अनुमति विक्रय-पत्र पंजीयन किया गया, उसने अफसर-माफिया की मिलीभगत और भ्रष्टाचार की परतें खोल दी हैं। लगातार हो रही शिकायतों और मीडिया में उठे सवालों के बाद आखिरकार कलेक्टर डॉ. केदार सिंह को जांच समिति गठित करनी पड़ी।
कानून को ताक पर रखकर हुई रजिस्ट्री
म.प्र. भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 165(6-क) के अनुसार, ऐसी जमीनों की बिक्री व पंजीयन के लिए पूर्व अनुमति अनिवार्य है। लेकिन शिकायतों से खुलासा हुआ कि सोहागपुर तहसील समेत कई तहसीलों में इस नियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाकर जमीनों की रजिस्ट्री कर दी गई।
अफसरों और रजिस्ट्री कार्यालय की मिलीभगत से यह सब संभव हुआ।
इससे राजस्व को भारी नुकसान हुआ और खरीदारों को भविष्य में कानूनी संकट झेलने की आशंका है।
जनता और मीडिया का दबाव पड़ा भारी
इस घोटाले की शिकायतें आवेदन-पत्रों, सोशल मीडिया, समाचार पत्रों और सीधे नागरिकों के माध्यम से सामने आईं। लगातार हो रहे खुलासों और बढ़ते जनदबाव ने प्रशासन को घेर लिया। नतीजतन, कलेक्टर को मजबूरी में जांच समिति का गठन करना पड़ा।
बनी जांच समिति
कलेक्टर के आदेशानुसार—
काजोल सिंह, एसडीएम (राजस्व) जयसिंहनगर को समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
कलेक्टर ने साफ कहा है कि कोई भी प्रभावित व्यक्ति – विक्रेता, खरीदार या वकील – प्रमाणित दस्तावेज़ों के साथ समिति के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है।
भ्रष्टाचार की परतें खुलने की उम्मीद
जमीन रजिस्ट्री का यह घोटाला शहडोल ज़िले में अब तक का सबसे बड़ा भूमि खेल माना जा रहा है। जनता की नज़रें अब समिति की रिपोर्ट पर टिकी हैं। बड़ा सवाल यह है कि—
क्या दोषियों पर कठोर कार्रवाई होगी?
या फिर हमेशा की तरह यह मामला भी लीपापोती के हवाले कर दिया जाएगा?