रामपुर से बंगवार तक: ठेकेदारी के कब्ज़े में कोयला खदानें, अफसर सिर्फ़ कुर्सी गर्माने में व्यस्त”

शहडोल / धनपुरी।

देश के ऊर्जा तंत्र की रीढ़ माने जाने वाली कोयला खदानें आज एक कड़वी सच्चाई का आईना बन चुकी हैं। जनता के टैक्स और राष्ट्रीय संपत्ति से चलने वाली सरकारी कंपनियों में अब खनन, परिवहन और उत्पादन से लेकर रखरखाव तक हर जिम्मेदारी ठेकेदारों के हाथों में है। सरकारी अफसर, जिनकी जेब हर महीने लाखों रुपये से भरती है, अब केवल फाइलों पर हस्ताक्षर और बिल पास करने तक सीमित होकर रह गए हैं।

असली काम ठेकेदारों के हवाले – सरकारी सिस्टम “नाम” के लिए

आज हालत यह है कि कोयला उत्पादन से जुड़ा लगभग हर काम ठेकेदारों के हवाले है।

रामपुर माइंस में ढोलू कंपनी का पूरा नियंत्रण है।

अमलाई माइंस में राधा चेन्नई मशीनें चलाती है।

खैरहा और बंगवार माइंस में जेएमएस ने मोर्चा संभाल रखा है।

ये कंपनियां न केवल ओवरबर्डन हटाने और खुदाई करती हैं, बल्कि मशीनें लाने, मजदूर रखने, ट्रक चलाने और सुरक्षा तक की जिम्मेदारी भी निभाती हैं। सरकारी कंपनी का काम अब सिर्फ़ भुगतान करना और अनुमोदन देना भर रह गया है।

 लाखों की सैलरी पर बैठे अफसर – मगर जिम्मेदारी शून्य

कोयला कंपनियों में मैनेजर, सब-एरिया मैनेजर, ओवरमैन और सुरक्षा अधिकारी जैसे पदों पर बैठे अफसरों की सैलरी हर महीने ₹1.5 से ₹3 लाख तक पहुंचती है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इनमें से ज्यादातर अफसर खान में न उतरते हैं, न उत्पादन देखते हैं, न श्रमिकों से संवाद करते हैं।

उनका “काम” अब महज़ इतना रह गया है –

ठेकेदारों के बिल पास करना,

मापपत्र (MB) पर हस्ताक्षर करना,

और कभी-कभी खान का दौरा कर फोटो खिंचवा लेना।

देश की संपत्ति से चलने वाली कंपनियों में यह हाल देखकर कोई भी पूछ सकता है – “जब सारा काम ठेकेदार ही कर रहा है, तो फिर सरकारी अफसर किस काम के?”

सरकारी कंपनी नहीं, ठेकेदारों की ‘क्लियरिंग एजेंसी’

कभी खुद खनन करने वाली सरकारी कोयला कंपनियां अब केवल “क्लियरिंग एजेंसी” बनकर रह गई हैं।

कंपनी ठेकेदार को अनुमति देती है,

ठेकेदार कोयला निकालता है,

और फिर वही कोयला कंपनी बेचकर मुनाफा कमाती है।

जनता को यह दिखाया जाता है कि कोयला सरकारी कंपनी निकाल रही है, जबकि सच्चाई यह है कि पूरा खेल ठेकेदारों के हाथ में है और सरकारी अफसर उस खेल के सिर्फ़ दर्शक बन चुके हैं।

जनता का पैसा, आराम की नौकरी

जनता के टैक्स से मिलने वाले अरबों रुपये अब उन कुर्सियों पर बैठने वालों को दिए जा रहे हैं जिनकी जवाबदेही लगभग शून्य है।

जो अधिकारी कभी उत्पादन का हिस्सा होते थे, आज ठेकेदारों पर निर्भर हैं।

जो खान के भीतर काम की निगरानी करते थे, आज दफ्तर की कुर्सियों तक सिमट चुके हैं।

यह न केवल प्रणाली की विफलता है बल्कि जनता के संसाधनों के दुरुपयोग का गंभीर मामला भी है।

 जवाबदेही तय करना अब समय की मांग

जब ठेकेदार ही मशीनें ला रहे हैं, मजदूर रख रहे हैं, उत्पादन कर रहे हैं और ट्रक चला रहे हैं, तब सरकारी अफसरों की जवाबदेही तय करना अब अनिवार्य हो गया है।

हर अधिकारी को वास्तविक जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।

ठेका प्रक्रिया की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।

और हर खदान में जवाबदेही तय करने के लिए पारदर्शी निगरानी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए।

 निष्कर्ष : संसाधन ठेकेदारों के कब्ज़े में, जनता सिर्फ़ दर्शक

रामपुर, अमलाई, खैरहा और बंगवार की तस्वीर यह दिखाती है कि कोयला उत्पादन अब सरकारी नहीं, बल्कि ठेकेदारों का कारोबार बन चुका है। जिन अफसरों को जनता की संपत्ति संभालनी थी, वे अब महज़ औपचारिकता निभाने में लगे हैं।

अगर इस ढांचे की समय रहते समीक्षा नहीं हुई, तो आने वाले सालों में सरकारी कोयला कंपनियां अपने ही खदानों में महज़ “मुहर लगाने वाली एजेंसी” बनकर रह जाएंगी।

यह रिपोर्ट किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ़ नहीं, बल्कि उस सच्चाई का दस्तावेज़ है जिसे अब तक छिपाया गया। इसे जानना हर नागरिक का अधिकार है, क्योंकि जनता के संसाधन, जनता की संपत्ति और जनता के टैक्स पर खड़ी यह प्रणाली अब अपने मूल उद्देश्य से भटक चुकी है।

  • Related Posts

    “गौमाता राष्ट्रमाता” — शहडोल में गूंजा गो-स्वाभिमान आंदोलन का बिगुल!

    धर्मेन्द्र द्विवेदी, एडिटर-इन-चीफ – 24 News Channel (शहडोल) अटल कामधेनु गौसेवा संस्थान ने मुख्यमंत्री के नाम 8 सूत्रीय माँगपत्र सौंपा, सड़कों पर उमड़ी आस्था की लहर! शहडोल, 29 अक्टूबर 2025।विंध्यभूमि…

    अमलाई माइन — 5:25 की वो शाम: जब मिट्टी नहीं, जवाबदेही मरी

    धर्मेन्द्र द्विवेदी | एडिटर-इन-चीफ, 24 News Channelविशेष रिपोर्ट — अमलाई (शहडोल) श्री रमन्ना, जवाब दो — तुम कहाँ थे जब एक आदमी दफन हो रहा था? स्थल के प्रशासनिक प्रभारी…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *