अनूपपुर।
चचाई स्थित अमरकंटक ताप विद्युत गृह एक बार फिर विवादों में है।
निविदा क्रमांक MPPGC-431929 (दिनांक 2 जुलाई 2025) ने विभाग की नीयत और प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
आरोप है कि यह निविदा समय से पहले जारी कर स्थानीय ठेकेदारों और श्रमिकों के अधिकारों की खुली अनदेखी की गई है।
भाजपा नेता सत्यनारायण फुक्कू सोनी ने इसे प्रशासनिक मनमानी और श्रमिक शोषण का खुला खेल करार देते हुए कड़ा विरोध दर्ज किया है।
विवाद की जड़ क्या है?
परंपरा के अनुसार यह निविदा अक्टूबर में जारी की जानी थी, ताकि शासन की नई श्रम दरें लागू हो सकें।
लेकिन इस बार जुलाई में ही निविदा निकाल दी गई।
नतीजा –
कम दरों पर ठेका – विभाग को तात्कालिक लाभ, लेकिन भविष्य में भुगतान विवाद तय।
स्थानीय ठेकेदार बाहर – नई दर की उम्मीद में उन्होंने भाग नहीं लिया।
श्रमिकों का शोषण – उन्हें न्यूनतम मजदूरी से भी कम दर पर काम करना पड़ रहा है।
प्रमुख आरोप –
प्राइज वेरिएशन आदेश लंबित: श्रम दर बढ़ने के बावजूद वर्षों से भुगतान नहीं सुधरा।
जबरदस्ती सस्ता टेंडर: जल्दबाज़ी में दरें घटाकर बाहरी कंपनियों को फायदा।
श्रमिक दर आदेश की अनदेखी: अप्रैल 2025 में घोषित दरों को लागू नहीं किया गया।
स्थानीय ठेकेदारों की उपेक्षा: लंबी अवधि के टेंडरों से उनकी भागीदारी शून्य।
स्थानीय आवाज़ें क्यों गुस्से में?
स्थानीय ठेकेदारों का कहना है –
“आपदा हो, खराबी हो या इमरजेंसी – सबसे पहले हम विभाग के साथ खड़े रहते हैं।
फिर भी हमें सुनियोजित तरीके से बाहर कर दिया गया और बाहरी कंपनियों को फायदा पहुँचाया जा रहा है।”
श्रमिकों का आरोप और भी गंभीर है –
समय पर भुगतान नहीं
स्वास्थ्य व सुरक्षा की अनदेखी
न्यूनतम वेतन से भी कम मजदूरी
न्यायालय आदेशों की अवहेलना
यह सीधा उनके मौलिक अधिकारों और जीवन गरिमा पर हमला है।
सोनी की सात मांगें –
भाजपा नेता सत्यनारायण फुक्कू सोनी ने विभाग से सात कड़े कदम उठाने की मांग की है:
1. निविदा क्रमांक MPPGC-431929 तत्काल निरस्त हो।
2. अगली निविदा अक्टूबर 2025 में ही जारी की जाए।
3. निविदा अवधि 1 वर्ष तक सीमित की जाए।
4. स्थानीय ठेकेदारों को प्राथमिकता मिले।
5. प्राइज वेरिएशन आदेश तत्काल लागू हों।
6. श्रमिकों को अद्यतन दरों पर भुगतान सुनिश्चित हो।
7. विभागीय अधिकारियों की स्वतंत्र जांच कराई जाए।
निचोड़ –
यह विवाद केवल एक टेंडर तकनीकी मामला नहीं, बल्कि स्थानीय ठेकेदारों और श्रमिकों के हक़-हक़ीक़त से जुड़ा बड़ा मुद्दा है।
अगर विभाग ने समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाए, तो यह प्रकरण जन आंदोलन और कानूनी चुनौती का रूप ले सकता है।
“बिजली बने या न बने, ठेकेदारों और मजदूरों का हक़ जरूर जल रहा है!”



