शहडोल।
बिजली विभाग का संगठित खेल अब फाइलों से निकलकर अदालत की चौखट तक पहुँचने वाला है।बुढ़ार में गायब हुई लाइन और पड़रिया में खड़ी की गई अवैध लाइन — दोनों मामलों में दस्तावेज़ी साक्ष्य इतने मजबूत हैं कि अब कोर्ट में पेश होकर भ्रष्टाचार का असली चेहरा उजागर करेंगे।
बुढ़ार प्रकरण — लाइन गायब, जिम्मेदारी भी गायब
2018 में खड़ी की गई 11 के.वी. लाइन 2024 तक हवा हो गई।
FIR नहीं, पंचनामा नहीं, जिम्मेदारी तय नहीं।
SE ने रिपोर्ट में लिख दिया “लाइन समाप्त” और CE ने आँख मूँद ली।
सवाल यह है कि “लाइन कहाँ गई? खंभे और ट्रांसफार्मर किसके घर पहुँचे?”अदालत में यह पहला करंट होगा।
पड़रिया प्रकरण — जेबें खाली, लाइन खड़ी
किसान उमेश पटेल से 5.73 लाख की वसूली।
पैसा विभागीय खाते में नहीं, बल्कि आउटसोर्स कर्मचारियों की जेब में।
अनुदान वाला ट्रांसफार्मर उठा कर यहाँ फिट।
Estimate (Project No. 697781, 22-03-2022) ट्रांसफर हो चुके JE की ID से फ़र्ज़ी बनाया गया।
बाद में DE डी.के. तिवारी ने नया Estimate बनवाकर इस अवैध लाइन को वैध करने की कोशिश की।
कोर्ट में गूंजने वाले सबूत:
डिजिटल पंचनामा।
लाइनमैन का पंचनामा।
उमेश पटेल का शपथ पत्र।
अखिलेश मिश्रा का लिखित बयान।
विभागीय पत्र क्रमांक 09543/08/3518-19 दिनांक 13.11.2024।
व्यंग्य की धार
“जब खंभे उड़ गए तो कहा — ‘लाइन डेड थी’।जब रकम निजी खातों में गई तो कहा — ‘रसीद की ज़रूरत नहीं थी’।जब शिकायतें हुईं तो कहा — ‘जाँच चल रही है’।अब सच अदालत के सामने आएगा और वहाँ ये सफ़ाई नहीं चलेगी, वहाँ सबूत बोलेंगे।”
जनता का सवाल
“क्या अब अदालत ही बताएगी कि सरकारी संपत्ति किसने हजम की?
”“क्या भ्रष्टाचारियों की बचाव की दीवार अब कोर्ट में ढह जाएगी?
”“क्या यह केस बिजली विभाग की साख का अंतिम इम्तिहान साबित होगा?”
अस्वीकरण :
यह रिपोर्ट विभागीय पत्रों, Estimate, पंचनामों, शपथ पत्रों और अन्य दस्तावेज़ी साक्ष्यों पर आधारित है। इसमें उल्लिखित तथ्य केवल जनहित में प्रस्तुत किए गए हैं। यदि किसी अधिकारी/कर्मचारी को इस पर आपत्ति है तो वे अपना पक्ष ‘24 News Channel’ को भेज सकते हैं। चैनल उनके जवाब को भी समान रूप से प्रकाशित करेगा।



