शहडोल।
ज़मीन की रजिस्ट्री का गोरखधंधा शहडोल में मौत से भी ताक़तवर बन चुका था।
यहाँ मुर्दे ज़िंदा हो जाते थे, कोर्ट के आदेश रद्दी हो जाते थे और कलेक्टर की अनुमति ठेंगा दिखा दी जाती थी।
सालों से चलता यह खेल अब राख में बदल रहा है – और इस राख की आँच इतनी तेज़ है कि अफसरशाही की कुर्सियाँ तक झुलस रही हैं।
पाँच चेहरों से नकाब नोचा गया
कलेक्टर डॉ. केदार सिंह ने ज़मीन के इस माफ़िया खेल में सीधे बम फोड़ दिए।
मोहम्मद सैफ अंसारी
अभिषेक कुमार गुप्ता
गंगा सागर सिंह
प्रीति शुक्ला
स्वरूप सरकार
इनके लाइसेंस अब निलंबित।
शहडोल में पहली बार ऐसा हुआ कि रजिस्ट्री के दलालों पर सीधी गाज गिरी
घोटाले की लपटें
मुर्दे को जिंदा कर खड़ा कर सौदा
हाईकोर्ट में मामला लंबित, लेकिन रजिस्ट्री धड़ल्ले से
निरस्त पॉवर ऑफ अटॉर्नी भी रुपयों के आगे वैध
प्रतिबंधित भूमि भी बिक गई मानो सरकारी सील कोई मज़ाक हो
यह सिर्फ धांधली नहीं, यह माफ़िया और अफसरशाही की गठजोड़ का ज्वालामुखी है।
कलेक्टर का धमाका
डॉ. केदार सिंह ने चेतावनी दी –
“अब सिर्फ लाइसेंस निलंबन पर मत रुको, सलाखों के पीछे भेजने की तैयारी करो। शहडोल में ग़ैरक़ानूनी रजिस्ट्री अब जलकर राख होगी।”
जनता का शोलों जैसा गुस्सा
गली–गली यही सवाल उठ रहे हैं –
इतने सालों तक यह लूट चलती रही और अफसर अंधे बने रहे, क्यों?
क्या सिर्फ पाँच नाम ही गुनहगार हैं या इनके पीछे के बड़े मगरमच्छ भी हैं?
क्या यह कार्रवाई सच में जेल तक पहुँचेगी या फिर मोटी फाइलों के ढेर में दब जाएगी?
पर्दे के पीछे की आग
सूत्र बताते हैं – यह धंधा अकेले दलालों का नहीं था।
रजिस्ट्री दफ्तर की मिलीभगत और ऊपर तक फैली सरपरस्ती के बिना मुर्दे खड़े नहीं होते और प्रतिबंधित ज़मीनें नहीं बिकतीं।
अगर जांच सच में ईमानदार हुई, तो बड़े नाम राख से उठते धुएँ में नज़र आएँगे।
खबर का विस्फोट
यह कोई “औपचारिक कार्रवाई” नहीं, यह वह आग है जो माफ़िया का साम्राज्य भस्म कर सकती है।
अब देखना है –
क्या यह गाज जेल की सलाखों तक पहुँचेगी?
या फिर यह आग भी फाइलों की धूल में बुझा दी जाएगी?
शहडोल की मिट्टी जल रही है और आवाज़ गूँज रही है –
“रजिस्ट्री माफ़िया का खेल खत्म करो, वरना यह आग जनता की बग़ावत बन जाएगी।”
यह सिर्फ खबर नहीं, यह धधकता विस्फोट है –
जिसने शहडोल से भोपाल तक सत्ता और अफसरशाही को झुलसाकर रख दिया है।



