
(विजयमत, 09 सितम्बर 2025, शहडोल संस्करण के हवाले से)
24 न्यूज़ चैनल की पड़ताल में सामने आया कि शहडोल ज़िले में दर्ज 888 अवैध रजिस्ट्री ने पूरे जिले की प्रशासनिक साख को हिला दिया है।
अगर भ्रष्टाचार को जीते-जागते देखना है तो शहडोल ज़िले के पंजीयक कार्यालय की फ़ाइलें पलट लीजिए। यहाँ 888 रजिस्ट्री दर्ज हैं — और इनमें ज़्यादातर अवैध! कलेक्टर का आदेश साफ था, “भूमि का अवैध पंजीयन रोको”, लेकिन आदेश ठंडे बस्ते में चला गया और रजिस्ट्री का धंधा पूरे शबाब पर चलता रहा।
आदेश कूड़े में, रजिस्ट्री धड़ल्ले से
कलेक्टर के निर्देश दीवार पर टंगे रहे और बाबुओं की कलमें दलालों के इशारे पर चलती रहीं। यह घोटाला बताता है कि यहाँ आदेशों की औकात शून्य और भूमाफिया की हैसियत सर्वोपरि है।
सरकारी ज़मीन तक बेच डाली
खुलासे चौंकाने वाले हैं —
जिन ज़मीनों को कभी बेचा ही नहीं जा सकता था, उनकी भी रजिस्ट्री कर दी गई।
गरीबों और समाजहित की ज़मीन तक बिक गई।
दलालों ने जेबें भरीं और अफसरों ने मुँह फेर लिया।
यह सिर्फ़ रजिस्ट्री नहीं, बल्कि सरकारी ज़मीन का माफियाओं को तोहफ़ा था।
मिलीभगत और करोड़ों का नुकसान
यह खेल किसी एक-दो बाबुओं का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम का है।
दलालों ने खरीदार जुटाए।
पंजीयक कार्यालय ने कागज़ों को वैधता का चोला पहनाया।
और ऊपर बैठे जिम्मेदार अफसर चुप रहे।
इन 888 अवैध रजिस्ट्री से सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये का नुकसान पहुँचा है। जनता की गाढ़ी कमाई का टैक्स भ्रष्टाचार के इस कुचक्र में बह गया।
उप-पंजीयक कटघरे में
इस घोटाले की असली चाबी उप-पंजीयक के पास थी।
उसकी अनुमति और हस्ताक्षर के बिना कोई रजिस्ट्री संभव ही नहीं।
अवैध रजिस्ट्री दर्ज होना बताता है कि उप-पंजीयक ने या तो मिलीभगत की, या फिर जानबूझकर आँखें मूँद लीं।
दोनों ही हालात में उप-पंजीयक इस महाघोटाले का मुख्य दोषी है।
आज जनता यही पूछ रही है — जब कलेक्टर ने रोक लगाई थी, तो उप-पंजीयक ने 888 रजिस्ट्री पर मुहर किसके इशारे पर लगाई?
कौन जिम्मेदार?
आदेश देने वाला प्रशासन सोता रहा।
उप-पंजीयक ने नियमों की हत्या की।
और अफसरों ने भ्रष्टाचार की छतरी तान दी।
यानी यह पूरा मामला संगठित तंत्र की चोरी है।
लोगों का गुस्सा और मांग
शहर में लोग खुलेआम कह रहे हैं –
“यह कोई साधारण ग़लती नहीं, बल्कि हमारी पीढ़ियों की ज़मीन की डकैती है। उप-पंजीयक और उसके साथियों को जेल के भीतर डालो, वरना जनता सड़कों पर उतरकर हिसाब लेगी।”
जनता की मांग है कि —
1. सभी 888 अवैध रजिस्ट्री तुरंत रद्द की जाएँ।
2. उप-पंजीयक और शामिल अफसरों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज हो।
3. सरकारी राजस्व की भरपाई दोषियों से कराई जाए।
जांच या ढकोसला?
सबसे बड़ा डर यही है कि जांच का नाम लेकर फिर वही लीपा-पोती न हो। फाइलें घूमेंगी, बयान आएंगे और मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा।
लेकिन इस बार जनता ठान चुकी है — “अगर इस पर गाज नहीं गिरी तो शहडोल को भ्रष्टाचार का गढ़ घोषित कर दो।”
कटाक्ष का आईना
“यहाँ आदेशों की कीमत रद्दी के भाव और रजिस्ट्री की दरें नोटों की गड्डियों के हिसाब से तय होती हैं।”
शहडोल का रजिस्ट्री घोटाला सिर्फ़ भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि कानून की मौत का एलान है। अब वक्त आ गया है कि जिम्मेदारों को नामजद कर उनके खिलाफ कार्रवाई हो, वरना हर नई रजिस्ट्री के साथ यह ज़िले की साख का कफ़न बन जाएगी।