“कहीं लाइन गोल, कहीं लाइन खड़ी — बिजली विभाग का 11 के.वी. घोटाला, जिसमें खंभे गायब, ट्रांसफार्मर उड़ गए और एक किसान की जेब एटीएम बन गई”

शहडोल।

बिजली विभाग का कमाल देखिए—जहाँ जनता महीनों बिजली कटौती से जूझती है, वहीं विभाग के अफसर और आउटसोर्स कर्मचारी 11 के.वी. लाइन के नाम पर करामाती खेल खेल रहे हैं।

एक जगह पूरी लाइन “गोल” कर दी गई और दूसरी जगह एक किसान की जेब से ₹5.73 लाख निकालकर “अवैध 11 के.वी. लाइन खड़ी” कर दी गई।

यह कोई अफवाह नहीं, बल्कि शहडोल जिले के बुढ़ार और केशवाही–पड़रिया क्षेत्र की सच्चाई है, जिसने अफसरों के “मौन भ्रष्टाचार” की पोल खोल दी है।

पहला किस्सा: बुढ़ार का मंजीत ढाबा प्रकरण — लाइन गोल

2018 में बुढ़ार क्षेत्र में 11 पोल, ट्रांसफार्मर, तार और इन्सुलेटर के साथ लाइन खड़ी की गई थी।

2024 आते-आते यह लाइन गायब हो गई।

FIR? — दर्ज नहीं।

पंचनामा? — बनाया नहीं।

साइट नक्शा? — हजम।

जिम्मेदारी? — “डेड” घोषित।

SE साहब की जांच रिपोर्ट पढ़ने पर लगेगा जैसे वे तकनीकी इंजीनियर नहीं, कब्रिस्तान के पुजारी हों।

उन्होंने लाइन को “डेड” कहकर दफना दिया।

जनता पूछ रही है—“अगर लाइन डेड थी तो खंभे और ट्रांसफार्मर किस चिता पर जलाए गए?”

SE की लीपापोती से साफ़ है कि जांच नहीं, अफसरों की सफाई अभियान चलाया गया।

और ऊपर बैठे MD व CE साहब?

सच तो यह है कि MD पर की गई हर शिकायत सबसे पहले CE को जाती है और CE उसे SE को फारवर्ड कर देता है।

CE खुद कहते हैं—“33 और 11 के.वी. की जांच SE करता है, मैं तो सिर्फ उससे बड़ी लाइनों की जांच करता हूँ।”

यानि खेल का पूरा ठीकरा SE पर फोड़कर CE भी पल्ला झाड़ लेते हैं।

लोग कह रहे हैं—“MD और CE ने शायद भ्रष्टाचार पर मौन व्रत ले रखा है।”

दूसरा किस्सा: केशवाही–पड़रिया प्रकरण — लाइन खड़ी

यहाँ शिकार बने किसान उमेश पटेल।

JE विकास सिंह और आउटसोर्स गैंग ने कहा—“खंभे और ट्रांसफार्मर लगेंगे, बस पैसा जमा करो।”

वसूली का हिसाब –

₹2 लाख — तरुण पटेल के खाते से।

₹1.43 लाख — एसबीआई कोटा (राजस्थान) से।

₹4 लाख — आउटसोर्स कंप्यूटर ऑपरेटर अखिलेश मिश्रा के निजी खाते में।

₹1.30 लाख — नकद, आउटसोर्स जीतेन्द्र विश्वकर्मा को।

कुल रकम: ₹5.73 लाख, और एक भी विभागीय रसीद नहीं।

इतना ही नहीं, किसान जवाहर गुप्ता का अनुदान वाला ट्रांसफार्मर चोरी कर उमेश पटेल को फिट कर दिया गया।

यानि सरकारी अनुदान का ट्रांसफार्मर किसान के नाम से “फ्री” निकला और भ्रष्टाचारियों के लिए “फी” बन गया।

इस खेल को वैधता का आशीर्वाद दिया तत्कालीन DE डी.के. तिवारी ने।

उन्होंने नया स्टीमेट बनवाया और अवैध लाइन को “सिस्टम की उपलब्धि” बना दिया।

बिजली विभाग की अजब-गजब लीला

SE साहब: “जब लाइन डेड है तो जिम्मेदारी भी मर चुकी है।”

JE विकास सिंह: “किसान से लाखों वसूलो, लाइन खड़ी करो, यही असली पावर सप्लाई है।”

DE डी.के. तिवारी: “अवैध को नया स्टीमेट देकर वैध बनाना ही विभाग की असली इंजीनियरिंग है।”

आउटसोर्स अखिलेश मिश्रा और जीतेन्द्र विश्वकर्मा: “वसूली हमारी नौकरी है, रसीद तो बेवकूफों के लिए होती है।”

CE साहब: “33 और 11 के.वी. की जांच SE करता है, मैं तो उससे बड़ी लाइनों की करता हूँ।”

MD साहब: “जब तक मीडिया चीखती रहे, तब तक चुप रहो; आखिर मौन साधना भी तो सेवा है।”

जनता के सवाल –

बुढ़ार में खड़ी लाइन गोल हो गई, केशवाही–पड़रिया में नई लाइन अवैध रूप से खड़ी कर दी गई—क्या यही बिजली विभाग की “नई तकनीक” है?

सरकारी संपत्ति जिन्न खा गया या अफसरों ने घर पहुँचा दी?

एक किसान की जेब को क्यों विभाग का एटीएम बना दिया गया?

क्या EOW और लोकायुक्त इस खेल पर कार्रवाई करेंगे या फिर यह भी फाइलों में दफन कर देंगे?

भ्रष्टाचार का चार्ट

बुढ़ार: 2018 में खड़ी लाइन 2024 में गोल।

11 खंभे, ट्रांसफार्मर, तार–इन्सुलेटर सब गायब।

SE ने कहा: “लाइन डेड थी, जिम्मेदारी भी मर गई।”

CE बोले: “11 और 33 के.वी. का जिम्मा SE का है, मैं नहीं देखता।”

केशवाही–पड़रिया: किसान उमेश पटेल से ₹5.73 लाख वसूले गए, रसीद शून्य।

रकम पहुँची आउटसोर्स अखिलेश मिश्रा और जीतेन्द्र विश्वकर्मा की जेब में।

अनुदान ट्रांसफार्मर गायब कर अवैध लाइन खड़ी की गई।

JE विकास सिंह ने खेल रचा, DE डी.के. तिवारी ने मोहर लगाई।

MD–CE: चुप। कार्रवाई: शून्य।

 अस्वीकरण

यह रिपोर्ट उपलब्ध दस्तावेज़ों, आवेदन पत्रों और विभागीय रिकॉर्ड के आधार पर तैयार की गई है। इसमें उल्लेखित तथ्य जनहित में प्रस्तुत किए गए हैं। यदि किसी अधिकारी/कर्मचारी को इस संबंध में आपत्ति है तो वे अपना पक्ष ‘24 News Channel’ को भेज सकते हैं, जिसे प्रकाशित किया जाएगा।

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