संपादकीय (गणेश चतुर्थी और स्थानीय संदर्भ) गणेश चतुर्थी: आस्था, परंपरा और समाज की जिम्मेदारी

शहडोल और बुढ़ार सहित पूरे देश में गणेश चतुर्थी का पर्व हर्षोल्लास और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। विघ्नहर्ता गणेश का यह उत्सव हमें केवल धार्मिक श्रद्धा ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और नई शुरुआत का संदेश भी देता है।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने जब इस पर्व को सार्वजनिक रूप से मनाने की शुरुआत की थी, तब इसका उद्देश्य समाज को जोड़ना और स्वतंत्रता आंदोलन में एकजुटता पैदा करना था। आज भी गणेश उत्सव शहडोल और बुढ़ार की गलियों से लेकर पूरे क्षेत्र में भाईचारे और मेलजोल की मिसाल पेश करता है।

लेकिन यह सच भी है कि समय के साथ पर्व का स्वरूप बदल रहा है। शहडोल और बुढ़ार में गणेश प्रतिमाओं की स्थापना तो बड़े उत्साह से होती है, मगर विसर्जन के समय नदियों और तालाबों में प्रदूषण भी बढ़ जाता है। यह हमारे पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरे की घंटी है।जरूरत है कि हम पर्यावरण हितैषी मूर्तियों और प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें ताकि हमारी आस्था, प्रकृति की रक्षा के साथ जुड़ सके।

त्योहार केवल उत्सव मनाने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज और प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी का प्रतीक भी हैं।इस गणेश चतुर्थी पर हम संकल्प लें कि शहडोल और बुढ़ार से लेकर पूरे क्षेत्र में गणेश उत्सव आस्था, एकता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश फैलाए।

गणपति बाप्पा मोरया! अगले बरस तू जल्दी आ…

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